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रबीन्द्रनाथ टैगोर
जन्म : 7 मई 1861, कोलकाता के जोड़ासांको में।

मृत्यु : 7 अगस्त 1941, कोलकाता।

उपाधि : गुरुदेव।

पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर की चौदहवीं संतान। नौ बरस की उम्र में ‘भानुसिंहेर पदावली’ पहली कविता की रचना। अठारह वर्ष की उम्र में आध्यात्मिक अनुभूतियाँ। 9 दिसंबर 1883 को विवाह। 41 बरस की उम्र में विधुर। कार्यदक्ष कुशल जमींदार का जीवन। 21 दिसंबर, 1901 को शांतिनिकेतन में पाँच विद्यार्थियों का स्कूल खोला, जो आज अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय है। नवम्बर, 1907 में प्रिय पुत्र शमीन्द्र की मृत्यु। ‘जन गण मन’ राष्ट्रगान 1911 में लिखा। बाँग्लादेश का राष्ट्रगान भी रवीन्द्रनाथ ने ही लिखा। दो देशों का राष्ट्रगान लिखने वाले कवि। 27 मई 1912 को इंग्लैंड की यात्रा के समय ‘गीतांजलि’ का अंग्रेजी अनुवाद ले गए। विलियम बटलर यीट्स ‘गीतांजलि’ पर मुग्ध। 19 नवम्बर, 1912 को नोबेल पुरस्कार ‘गीतांजलि’ पर। 6 मार्च, 1915 को शांतिनिकेतन में गांधी से मुलाकात। 13 अप्रैल, 1919 को जलियाँवाला बाग कांड के विरोध में ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटाई। चित्रकार, अभिनेता, कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, नाटककार रवीन्द्रनाथ जादू भी जानते थे।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर उन साहित्य सर्जकों में हैं, जिन्हें काल की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। रचनाओं के परिमाण की दृष्टि से भी कम ही लेखक उनकी बराबरी कर सकते हैं उन्होंने एक हजार से भी अधिक कविताएँ लिखीं और दो हज़ार से भी अधिक गीतों की रचना की। इनके अलावा उन्होंने बहुत-सारी कहानियाँ, उपन्यास, नाटक तथा धर्म, शिक्षा, दर्शन, राजनीति और साहित्य—जैसे विविध विषयों से संबंधित निबंध लिखे। उनकी दृष्टि उन सभी विषयों की ओर गई, जिनमें मनुष्य की अभिरुचि हो सकती है। कृतियों के गुण-गत मूल्यांकन की दृष्टि से वे उस ऊँचाई तक पहुँचे थे, जहाँ कुछेक महान् रचनाकार ही पहुँचते हैं। जब हम उनकी रचनाओं के विशाल क्षेत्र और महत्त्व का स्मरण करते हैं, तो इसमें तनिक आश्चर्य नहीं मालूम पड़ता कि उनके प्रशंसक उन्हें इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा साहित्य-स्रष्टा मानते हैं।

महाकवि के रूप में प्रतिष्ठित रवीन्द्रनाथ ठाकुर भारत के विशिष्ट नाट्यकारों की भी अग्रणी पंक्ति में हैं। परंपरागत और आधुनिक समाज की विसंगतियों एवं विडंबनाओं को चित्रित करते हुए उनके नाटक व्यक्ति और संसार के बीच उपस्थित अयाचित समस्याओं के साथ संवाद करते हैं। परंपरागत संस्कृति नाटक से जुड़े और बृहत्तर बंगाल के रंगमंच और रंगकर्म के साथ निरंतर गतिशील लोकनाटक (जात्रा आदि) तथा व्यावसायिक रंगमंच तीनों से संबद्ध होते हुए भी रवीन्द्रनाथ उन्हें अतिक्रान्त कर अपनी जटिल नाट्य-संरचना को बहुआयामी, निरंतर विकासमान और अंतरंग अनुभव से पुष्ट कर प्रस्तुत करते हैं। यही कारण है कि राजा ओ रानी, विसर्जन, डाकघर, नटीरपूजा, रक्तकरबी (लाल कनेर), अचलायतन, शापमोचन, चिरकुमार सभा आदि उनकी विशिष्ट नाट्य-कृतियाँ न केवल बंगाल में, बल्कि देश-विदेश के रंगमंचों पर अनगिनत बार सफलतापूर्वक मंचित हो चुकी हैं।

उपन्यास : आँख की किरकिरी, नाव दुर्घटना, घर और बाहर, योगायोग, गोरा, कुलवधू।

कहानी/ कहानी संग्रह : काबुलीवाला, राजा का न्याय, तोते की कहानी, भोला राजा, पारस मणि, मास्टर जी, नकली गढ़, डाक्टरी, गौरी, छात्र की परीक्षा। दस प्रतिनिधि कहानियां : (अनधिकार प्रवेश, मास्टर साहब, पोस्टमास्टर, जीवित और मृत, काबुलीवाला, आधी रात में, क्षुधित पाषाण, अतिथि, दुराशा, तोता-कहानी।), गुप्त धन : (मास्टर साहब, गुप्त धन, पत्नी का पत्र, अपरिचिता, पात्र और पात्री।), चोरी का धन : (पोस्टमास्टर, एक रात, जीवित और मृत, चोरी का धन, सजा, समाप्ति, धूप और छाया।), विचारक : (त्याग, छुट्टी, सुभा, महामाया, मध्यवर्तिनी, विचारक, बला, दीदी, मान-भंजन, काबुलीवाला।), शिक्षाप्रद कहानियाँ : (पोस्टमास्टर, मुन्ने की वापसी, मालादान, काबुलीवाला, दृष्टिदान, देशभक्त, दुराशा, श्रद्धांजलि, मणिहार, अनाथ की दीदी, सुभाषिणी, कंचन, धन का मोह, वंशज दान, नए जमाने की हवा, छुट्टियों का इंतजार, हेमू।), आधी रात में : (दृष्टिदान, आधी रात में, नष्टनीड़, रासमणि का बेटा।)

सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ : (जीवित और मृत, क्षुधित पाषाण, नष्टनीड़, समाज का शिकार, भिखारिन, काबुलीवाला, पाषाणी, रामकन्हाई की मूर्खता, दीदी, माल्यदान, चोरी का धन, रासमणि का बेटा, विद्रोही, मुन्ने की वापसी, कंकाल।) आदि कहानी संग्रह।

काव्य कृतियाँ : गीतांजलि, रवीन्द्रनाथ की कविताएँ, कालमृगया, मायार खेला।

नाट्य कृतियाँ : राजा ओ रानी, विसर्जन, डाकघर, नटीरपूजा, रक्तकरबी (लाल कनेर), अचलायतन, शापमोचन, चिरकुमार सभा, चित्रांगदा, मुकुट, प्रायश्चित्त, शारदोत्सव,फाल्गुनी, चण्डालिका, श्यामा।

आंख की किरकिरी

रबीन्द्रनाथ टैगोर

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नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....

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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

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